बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
कैल्शियम की न्यूनता से होने वाले रोग
कैल्शियम की कमी से मनुष्य को विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। बच्चों में कैल्शियम की कमी से रिकेट्स नामक रोग हो जाता है। इससे बच्चों की टाँगें कमजोर और टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। पैर धनुषाकार हो जाते हैं तथा छाती की हड्डियाँ पोली हो जाती हैं।
प्रौढ़ावस्था में कैल्शियम की कमी से दुर्बलता आ जाती है। यह स्थिति ऑस्टियोमलेशिया कहलाती है। यह स्थिति पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में ज्यादा दिखाई देती है। प्रायः गर्भावस्था व धात्री अवस्था में स्त्रियों को भ्रूण की वृद्धि के लिए ज्यादा कैल्शियम की जरूरत होती है। यह आवश्यकता पूर्ण न होने पर उनमें विकार उत्पन्न हो जाता है। निरन्तर कैल्शियम की कमी होती रहने से हड्डियों में से कैल्शियम बराबर खिंचता रहता है, जिससे हड्डियों में छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं। यह स्थिति ऑस्टियोपोरोसिस कहलाती है।
शरीर में कैल्शियम की अधिकता के परिणाम
ऐसी स्थिति में भूख कम लगती है, कब्ज हो जाती है, वमन होने लगता है तथा शरीर की मांसपेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं। रक्त में कैल्शियम की मात्रा बढ़ने के साथ-साथ यूरिया, प्लाज्मा कोलेस्टेरॉल भी बढ़ जाते हैं। गुर्दों में कैल्शियम एकत्र होने से स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति प्रौढ़ व बच्चों दोनों की हो सकती है। कैल्शियम की अधिकता सम्बन्धी असामान्यता हाइपरकैल्सिमिया कहते हैं।
2. फॉस्फोरस - कैल्शियम के ही समान फॉस्फोरस भी एक आवश्यक एवं उपयोगी खनिज लवण है। हमारे शरीर में विद्यमान कुल खनिज - मात्रा का एक चौथाई भाग फॉस्फोरस ही होता है। फॉस्फोरस एक सरलता से उपलब्ध होने वाला खनिज है; अतः सामान्य रूप से शरीर में इसकी कमी की आशंका नहीं रहती।
फॉस्फोरस की प्राप्ति के प्रमुख स्त्रोत - प्रायः जिस आहार में कैल्शियम व प्रोटीन अच्छी मात्रा में उपस्थित होगा, उसमें फॉस्फोरस की उपस्थिति भी निश्चित रूप से होती है, किन्तु कैल्शियम की अपेक्षा फॉस्फोरस खाद्य-पदार्थों में सरलता से घुल-मिल जाता है। सामान्यतः खाद्य-पदार्थों में फॉस्फोरस का अभाव देखने में नहीं आता। फॉस्फोरस प्रोटीन के साथ संयुक्त होकर फॉस्फो प्रोटीन के रूप में दूध की प्रोटीन केसीन के रूप में मौजूद रहता है। अण्डे की जर्दी वाले भाग में न्यूक्लियोप्रोटीन में भी फॉस्फोरस पाया जाता है। अनेक वसाओं में फॉस्फोलिपिड तथा कार्बोहाइड्रेट्स में फॉस्फोरिक एस्टर के रूप में इसकी उपस्थिति पायी जाती है। विभिन्न अनाजों, दालों, महुए तथा तिल के बीजों में फाइटिन व फाइटिक अम्ल के रूप में फॉस्फोरस उपस्थित रहता है।
फॉस्फोरस के कार्य
फॉस्फोरस का अवशोषण तथा चयापचय — फॉस्फोरस का अवशोषण छोटी आँत में अकार्बनिक फॉस्फेट की भाँति होता है। फॉस्फोरस के कार्बनिक यौगिक (फाइटिक अम्ल) भी पुनः अवशोषण से पूर्व अकार्बनिक फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाते हैं। अनाज व दालों के फॉस्फोरस का अवशोषण अण्डे, मांस व मछली आदि की तुलना में देर से होता है। 10-40% तक फॉस्फोरस की मात्रा शरीर के अंगों द्वारा उपयोग कर ली जाती है, शेष मात्रा गुर्दों द्वारा उत्सर्जित कर दी जाती है।
फॉस्फोरस की न्यूनता से व्यक्ति को किसी गम्भीर रोग से तो ग्रसित होने की सम्भावना रहती, परन्तु फॉस्फोरस हीनता से व्यक्ति में थकान, भूख न लगना आदि लक्षण प्रकट होते हैं तथा उसकी अस्थियों में खनिज लवण का क्षय होने लगता है।
3. सोडियम — सोडियम साधारण नमक का यौगिक सोडियम क्लोराइड का एक तत्त्व है। सोडियम (Sodium) प्राप्ति का सबसे अच्छा स्रोत खाने का नमक (Sodium Chloride — NaCl) है। साधारण नमक सोडियम व क्लोरीन का एक यौगिक है। हम अपने आहार में प्रतिदिन प्राय: 2-6 ग्राम सोडियम की मात्रा लेते हैं।
सोडियम के कार्य
(i) सोडियम शरीर में अम्लीय व क्षारीय स्थिति में सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
(ii) सामान्य, स्वस्थ प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में लगभग 100 ग्राम सोडियम तत्त्व उपस्थित रहता है। शरीर के समस्त बाह्य कोशिकीय द्रव्यों एवं प्लाज्मा आदि में यह उपस्थित रहता है। सोडियम के अणु शरीर में क्लोराइड, कार्बोनेट, फॉस्फेट व प्रोटीनेट के रूप में रहते हैं।
(iii) यह हृदय की धड़कन तथा स्नायुओं द्वारा प्राप्त होने वाली उत्तेजना को नियमित बनाए रखता है।
(iv) मांसपेशियों के संकुचन तथा नाड़ी संस्थान की संवेदन शक्ति को बनाए रखता है।
सोडियम की दैनिक आवश्यकता - प्रतिदिन आहार में 2 से 6 ग्राम सोडियम की मात्रा लेना पर्याप्त होता है। खाने का नमक सोडियम का प्रमुख स्रोत है। अन्य भोज्य पदार्थ; जैसे दूध, छैना, अण्डा, मांस तथा कुछ सब्जियों में भी सोडियम की अल्प मात्रा उपस्थित रहती है।
4. पोटैशियम — पोटैशियम खनिज लवण (Potassium) की उपस्थिति अन्तःकोशिकीय द्रव्यों, लाल रक्त कणिकाओं एवं मांसपेशियों में रहती है। प्रत्येक सामान्य एवं स्वस्थ व्यक्ति को नित्य प्रति के आहार में इसकी 1.5-6.0 ग्राम तक मात्रा लेना पर्याप्त हो जाता है।.
पोटैशियम प्राप्ति के प्रमुख स्रोत- रसदार फलों; जैसे नींबू, सन्तरा आदि में पोटैशियम तत्त्व उपस्थित रहता है। दूध और दूध से बने पदार्थों में भी पोटैशियम तत्त्व पाया जाता है। चावल की ऊपरी परत एवं मक्का के आटे में भी इसकी अल्प मात्रा रहती है। यह खीरा, ककड़ी, टमाटर, आडू तथा अंगूर जैसे कुछ सब्जियों व फलों में भी पाया जाता है। आलू में भी इसकी उपस्थिति रहती है। समस्त वनस्पति भोज्य पदार्थ भी पोटैशियम के अच्छे स्रोत हैं। चाय, कॉफी, कोको, चावल की सफेदी में इसका आधिक्य होता है।
पोटैशियम की न्यूनता के प्रभाव - पोटैशियम की कमी की स्थिति में मांसपेशियाँ क्षीण हो जाती हैं, भूख मर जाती है, हृदय-स्पन्दन की गति भी अनियन्त्रित हो जाती है। व्यक्ति अशान्त, चिड़चिड़ा व परेशान सा रहने लगता है। एडीसन्स रोग में रक्त में पोटैशियम की मात्रा बढ़ जाती है। पोटैशियम की यह बढ़ी हुई स्थिति भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।
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